Monday, 31 October 2016

चाँद,अमावस का !

आज चाँद आसमान में कुछ इतना भर है
जितनी मैं हूँ
तुम्हारे भीतर !

चाँद अमावस का

Saturday, 8 October 2016

डर

                                 डर

डर को इतने करीब से देखना
ख़ौपनाख !
वो दो कदम
जो सरासर
बढ़ते मेरी ओर
मैं !
निश्हाय
बेबस
हताश
बैठ एक कोने में
देखती
उन क़दमों को
बढ़ते स्वम् की ओर !
एक हाथ बढ़ता है
मुझे नोंचने को
मेरी आह
चीख़
जिसे वो दूसरे हाथ से यूँ दबा डालता
मानो शोर में निकल रही हो तमाम चीखे
गुमनाम !

Saturday, 1 October 2016

तुम्हारे साथ !

तुम्हारे साथ मन से थी
सरीर को कही दूर छोड़
किसी कोने में दफ़न कर
इस मांस के चीथड़े को
तुम्हारे संग हो जाती थी
लेकिन अब
केवल सरीर से हर जगह मजूद होती हूँ
मन तो रह गया कही
पीछे बहुत पीछे
कही छूट सा गया !