Saturday, 25 February 2017
सफ़ेद चादर !
सफ़ेद चादर
सांझ हो चली थी और ठंड बढ़ती ही जा रही थी ! पहाड़ों से सूरज कुछ यूँ ढल रहा था मानो क्षण भर के लिए वो पहाड़ की सूखी चोटियों में जान भर रहा हो जो एक अरसे से बेजान पड़ी हुई है,कुछ यूँ उस ढलते सूरज की लालिमा प्रतीत हो रही थी।
नीलिमा,निहाल के काँधे पर सर टिकाये एकटक उस ढलते सूरज को देखती और निहाल उसे निहारता !
लगता है आज बहुत तेज बरसात होने वाली है !देखो आसमान कैसे धुंधला गया ! निहाल कहता है।
लेकिन नीलिमा अभी भी एकटक उस ढलते सूरज को निहारते हुए खुद को निहाल में समेटे हुए थी,कुछ इस तरह जैसे अमावस की रात को वो अधूरा चाँद खुद को छिपाता है बादलों की ओट में।
आज रात का सारा खाना मैं बनाऊंगा और तुम मुझे देखते रहना,हो सकता है फिर कभी तुमको मेरे हाथ का खाना खाने का मौका मिले न मिले !
निहाल के इस एक वाक्य ने नीलिमा को बेचैन कर दिया,वो घबरा गयी, आखिर ऐसा क्यों कहा उसने,क्यों नहीं वो मिलेंगे,क्यों नहीं भला उसे निहाल के हाथ का कहना खाने का मौका मिलेगा ! वो दोनों तो एक दूसरे के जीवन संगी है,यही कहता है न निहाल उसे हमेशा !फिर ऐसा क्यों कहा उसने ! ये सारी ही बातें एकाएक नीलिमा के ज़हन में घूमने लगी।
मुझे बहुत ठंड लग रही है मैं जाती हूँ सोने,भूख भी नहीं है,तुम खाना खा लेना !नीलिमा अपनी दबी सी आवाज़ में कहते हुए चली गयी।सोने की हज़ार कोशिशें करते करते असफल हो जाती है।आज उसे निहाल के साथ वो खूबसूरत ख्वाब भी नहीं आरहे जिन्हें नीलिमा नींद न आने पे अक्सर देखा करती है।
बहुत देर हो गयी,नीलिमा को सहसा याद आता है कि निहाल भी है वहाँ, वह अभी तक आया क्यों नहीं ?कहा गया आख़िर वह !
नीलिमा अचानक ही नंगे पॉव दौड़ी चली जाती है निहाल के पास।इतने में निहाल को सामने खड़ा पाकर उसे थोड़ा चैन मिला और निहाल से लिपट जाती है,उसे अपनी बाहों में इस तरह बाध देती है कि निहाल चाहकर भी खुद को छुड़ा न पाए।
बहुत रात हो चुकी है,ठंड भी बहुत है तुम बीमार पड़ जाओगी !अब सो जाओ ! निहाल,नीलिमा को अपनी गोद में उठाकर कमरे में लाते हुए कहता है।
निहाल के इस स्पर्श मात्र से नीलिमा का रोम-रोम खिल उठा और उसका सरीर चूर-चूर होकर बिखर गया जिसे वह चाहकर भी समेटना नहीं चाहती थी !उसने खुद को पूरी तरह से निहाल को सौप दिया।
यह अहसास उसके लिए एकदम नया था,अब से पहले कभी उसको किसी ने छुवा नहीं था ।आज निहाल का यह स्पर्श उसे पूरी तरह पिघला रहा था मोम की भांति !
उस बर्फ़ की तरह जो पहाड़ों में सदियों से जमी रहती है लेकिन धूप के एक टुकड़े के छू जाने मात्र से पिघल कर पानी-पानी होकर जमीन में बह जाता है अपनी झरनों के लिए !
खिड़कियों से झांकती हुयी सूरज की किरणें धीरे धीरे नीलिमा के चेहरे पर पड़ रही थी,सहसा उसकी आँखें खुली और नज़र सामने टंगी दीवार पे जा टिकी,समय देखा तो साड़े आठ बज चुके थे।
अचानक पीछे से आवाज सुनाई देती है ! "एक काम करो उठकर जल्दी अपना सामान बांधो और चली जाओ यहाँ से" एक पल के लिए नीलिमा आँखे बंद कर नींद में दोबारा जाने की कोशिश करती है ! शायद यह कोई बुरा सपना था !जिस आवाज को वह पहचान भी नहीं पाई थी ! अचानक वह पीछे मुड़कर देखती है तो पति है कि निहाल तैयार होकर अपना सारा सामान पैक कर चुका है और जाने को तैयार खड़ा है।
सारे कमरे में नीलिमा का समंबस्ट व्यस्त बिखरा हुआ था जैसे कि इस्तेमाल की गयी चीज़ों को फेक दिया जाता है !
क्या हुआ निहाल,तुम ऐसा क्यों बोल रहे हो,आखिर ऐसा कर क्यों रहे हो ! नीलिमा दरी सहमी सी निहाल से लगातार प्रश्न करती है लेकिन निहाल कोई उत्तर नहीं देता।
इस अंजान शहर में निहाल के सिवाय उसका और है ही कौन ! कहा जयेगी वह ! नीलिमा को भीतर ही भीतर यही चिंता खाये जा रही थी। उस से भी अधिक इस बात का डर आखिर निहाल के इस बदले हुए व्यवहार का कारण क्या है ? क्या हुआ कल रात ऐसा ?
अनगिनत सवाल नीलिमा के ज़ेहन में कूद फांद कर रहे थे।
इतने में ही एकाएक नीलिमा की नज़र उस चादर पर जा टिकी जिस पर वह कल रात सोई थी,'जो सफेफ थी' कोरी 'सफ़ेद चादर'.....
Thursday, 9 February 2017
एक अंतहीन दिशा में !
मेरा बढ़ना धीरे धीरे
एक दिशा में
एक मंज़र की तलाश में
सफ़र में चलते हुए
नदी में तैरते हुए
पहाड़ चढ़ते हुए
आख़िर दिखाई दिया
अंतहीन आसमान।
Subscribe to:
Posts (Atom)