Thursday, 30 August 2018

तुम क्या हो...

तुम क्या हो...

कभी सोचा क्या हो तुम ?
तुम्हारी जगह कहाँ है ?
किसी के दिल में !
नहीं...
नही हो तुम किसी के दिल मे !
तुम एक जरूरत मात्र हो !
कैसी जरूरत...?
मैं बताती हूँ ...
तुम्हारा सरीर
तुमको पता है
यह तुम्हारे लिए एक अभिशाप बन गया है...
जो देखता है वो एक पेड़ की तरह देखता है
वो उस पेड़ से बहुत चीज़े बना सकता है
कुर्सी
टेबल
बेड...
और भी सारी इस्तेमाल की चीज़ें !
लेकिन वो कभी यह नहीं सोचता
कि इस पेड़ की...
डाली है
टहनी है
इस पर पत्ते है
इसमे फल है,भविष्य में और आएंगे
हर रोज़ यह पेड़ जाने किस किस को तपती धूप में
शीतल छाह देता है !
तुमको एक इस्तेमाल की चीज़ समझ
हर रोज़ फेक दिया जाता है !
फिर तुम खुद से सवाल करती हो
क्या हूँ मैं ?
कहाँ हूँ मैं ?

Sunday, 12 August 2018

पापा...

                            
वो कभी मुझे मेरी जिम्मेदारियां नहीं बताते,
लेकिन...
जब एक नज़र भर,
वो उम्मीद भरी आंखें मेरी ओर तकती है,
ख़ुद-ब-खुद बयां हो जाते हैं
वो सपने...
जिनके चित्र उन नम आंखों में तैर रहें !
वो कभी कमजोर नहीं पड़ते !
लेकिन
पैरों का यूँ लड़खड़ाना
बयां करता है जीवन भर का वो सफ़र...
जिसे बिना रुके तय करते आएं
कभी नहीं आने देते चेहरे पर थकान
लेकिन
माथे पर लेटी
वो बलें
बयां करती है...
हर वह त्याग,
जो औरों की खुशी के लिए किया !