तुम क्या हो...
कभी सोचा क्या हो तुम ?
तुम्हारी जगह कहाँ है ?
किसी के दिल में !
नहीं...
नही हो तुम किसी के दिल मे !
तुम एक जरूरत मात्र हो !
कैसी जरूरत...?
मैं बताती हूँ ...
तुम्हारा सरीर
तुमको पता है
यह तुम्हारे लिए एक अभिशाप बन गया है...
जो देखता है वो एक पेड़ की तरह देखता है
वो उस पेड़ से बहुत चीज़े बना सकता है
कुर्सी
टेबल
बेड...
और भी सारी इस्तेमाल की चीज़ें !
लेकिन वो कभी यह नहीं सोचता
कि इस पेड़ की...
डाली है
टहनी है
इस पर पत्ते है
इसमे फल है,भविष्य में और आएंगे
हर रोज़ यह पेड़ जाने किस किस को तपती धूप में
शीतल छाह देता है !
तुमको एक इस्तेमाल की चीज़ समझ
हर रोज़ फेक दिया जाता है !
फिर तुम खुद से सवाल करती हो
क्या हूँ मैं ?
कहाँ हूँ मैं ?