जानते हो....!
उस पहाड़ी नदी से जब इस बार अकेली गुजरी तो क्या बोली वो मुझ से
वो कहा है जिसके संग घण्टो बैठी रहती
मुझ पर पैर डाले !
मैं मौन वहाँ से गुजर गई
थोड़ी आगे बढ़ी ही थी कि
सरसो मेरे कदमों मे लिपटते हुए
इठलाती हुए बोली
इस बार नहीं सजाओगी मुझे अपनी जुल्फों में !
और वो ऊँचे ऊँचे चीड़
वो तो झुक के नीचे आगये
कि,अब तो झूला डाल लो
तब तुमको तंग करते और भी ऊँचे हो जाया करते
वो पहाड़ की चढ़ाई...
बड़ी मायूस होकर मुझ से बोली
कहाँ है वो
जो अपनी पीठ पर बिठा के तुमको मुझ से पार करवाता था !
वो बुरांश वो तो मुझ पर बरसे ही जा रहे थे
कि, अब तो तोड़ लो हमें डाली से !
देखो ना सब कुछ तो बदल रहा था
मेरे लिए...
सिवाय तुम्हारे
मेरे लिए...
Monday, 25 December 2017
बदलना
Tuesday, 29 August 2017
आज फिर.....
तुम्हारी याद कितनी ख़ूबसूरत होती है
बिलकुल जैसे-
पहाड़ो पर ढलते सूरज की लालिमा
जो,कुछ ही क्षण के लिए ही
उन पहाड़ो की सूखी चोटियों को
जान दे जाती है
जो अरसे से बेजान पड़ी हुई हैं
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Sunday, 2 July 2017
Sunday, 7 May 2017
मैं लौटूंगी !
मैं लौटूंगी तुम्हारे पास...!
वो नन्हा फूल बनकर,
जो हर रोज़ तुम्हारे आँगन में खिलेगा,
अपनी खुसबू से सबको महका देगा !
मैं लौटूंगी तुम्हारे पास वो नन्हा पौधा बनकर,
जो हर पल तुमको ठंडी छाँह देगा !
मैं लौटूंगी तुम्हारे पास,
तुम्हारी नन्ही बेटी बनकर,
जिसकी किलकारियों से तुम्हारा आँगन गूँज उठेगा !
मैं लौटूंगी तुम्हारे पास,
वो नन्हा तारा बनकर,
जो तुम्हारी हर दुआ पूरी करने टूट जाया करेगा !
मैं लौटूंगी तुम्हारे पास,
बारिश की वो पहली बूंद बनकर,
जो तुम्हारी रूह को भिगो देगी !
और तुम पर जी भर के बरस जाउंगी !
मैं लौटूंगी तुम्हारे पास,
सूरज की पहली किरण बनकर,
और तुम्हारे जीवन में उजाले भर दूंगी !
मैं लौटूंगी तुम्हारे पास,
हर उस रूप में,
जो तुम्हें जीने की वज़ह देगा !
हर युग,
हर जन्म,
तुम्हारे लिए... सिर्फ तुम्हारे लिए !
Saturday, 25 February 2017
सफ़ेद चादर !
Thursday, 9 February 2017
एक अंतहीन दिशा में !
मेरा बढ़ना धीरे धीरे
एक दिशा में
एक मंज़र की तलाश में
सफ़र में चलते हुए
नदी में तैरते हुए
पहाड़ चढ़ते हुए
आख़िर दिखाई दिया
अंतहीन आसमान।