कितना आगे बढ़ गए तुम
उस मोड़ से
जहाँ मुझे छोड़ के चल पड़े थे
तुम तो आगे बढ़ने के लिए चले थे वहाँ से
लेकिन किसी को यूँ बीच राह में छोड़
क्या कभी पैर कापें नहीं
उसके पैरों को जाम देख कर
जो आज भी सदियों से वही जाम है
जस के तस !
उस मोड़ से आगे तुम बहुत दूर चले गए
और बीच राह में रह गयी 'मैं'
अकेले खड़े !
Monday, 8 October 2018
उस मोड़ से आगे
Thursday, 30 August 2018
तुम क्या हो...
तुम क्या हो...
कभी सोचा क्या हो तुम ?
तुम्हारी जगह कहाँ है ?
किसी के दिल में !
नहीं...
नही हो तुम किसी के दिल मे !
तुम एक जरूरत मात्र हो !
कैसी जरूरत...?
मैं बताती हूँ ...
तुम्हारा सरीर
तुमको पता है
यह तुम्हारे लिए एक अभिशाप बन गया है...
जो देखता है वो एक पेड़ की तरह देखता है
वो उस पेड़ से बहुत चीज़े बना सकता है
कुर्सी
टेबल
बेड...
और भी सारी इस्तेमाल की चीज़ें !
लेकिन वो कभी यह नहीं सोचता
कि इस पेड़ की...
डाली है
टहनी है
इस पर पत्ते है
इसमे फल है,भविष्य में और आएंगे
हर रोज़ यह पेड़ जाने किस किस को तपती धूप में
शीतल छाह देता है !
तुमको एक इस्तेमाल की चीज़ समझ
हर रोज़ फेक दिया जाता है !
फिर तुम खुद से सवाल करती हो
क्या हूँ मैं ?
कहाँ हूँ मैं ?
Sunday, 12 August 2018
पापा...
वो कभी मुझे मेरी जिम्मेदारियां नहीं बताते,
लेकिन...
जब एक नज़र भर,
वो उम्मीद भरी आंखें मेरी ओर तकती है,
ख़ुद-ब-खुद बयां हो जाते हैं
वो सपने...
जिनके चित्र उन नम आंखों में तैर रहें !
वो कभी कमजोर नहीं पड़ते !
लेकिन
पैरों का यूँ लड़खड़ाना
बयां करता है जीवन भर का वो सफ़र...
जिसे बिना रुके तय करते आएं
कभी नहीं आने देते चेहरे पर थकान
लेकिन
माथे पर लेटी
वो बलें
बयां करती है...
हर वह त्याग,
जो औरों की खुशी के लिए किया !
Sunday, 18 February 2018
'शुक्रिया'
'शुक्रिया'
जब जब मुझे तुम याद आते हो
तब तब मुझे किसी से प्यार हो जाता है
जब कभी कोई प्यार से पुकारता है मुझे
याद आता है तब तेरा तेज मुझ पर झल्लाना
एक पल के लिए जब कोई छूता भर है
याद आता है तेरा मुझ पर हाथ उठाना
हरेक बात पर मेरी परवाह
याद दिलाती है हर पल की तेरी लापरवाही मेरे लिए
जहान में सबसे अनमोल बना डालना किसी का
तब याद आता है तेरा उपेक्षित समझ दूर छिटकना
हर वक़्त हर पल सामने साये की तरह किसी की मज़ूदगी,
याद दिलाता है तेरे लिए अंतहीन इंतज़ार !
तेरी हर गलती,हर रुसवाई,हर वक़्त का वो प्यार
और जाने क्या क्या.....सब
मुझे किसी से भी प्यार करने को धकेलती हैं !
Friday, 16 February 2018
Tuesday, 9 January 2018
तेरा स्पर्श
तुम्हारा स्पर्श पाते ही
मैं सिमट गयी
जैसे,
झरना सिमट जाता है नदी में।
और तुम फ़ैल गये पहाड़ से,
मुझे खुद में लिपटा के।