Saturday, 16 July 2016

'तुम' मुझ में !

मै शब्द हूँ
उन शब्दों का अर्थ हो तुम
मैं साज़ हूँ
उस साज़ के सुर हो तुम
मैं समुन्दर हूँ
इस समुन्दर के साहिल हो तुम
मैं दिल हूँ
जिसकी धड़कन हो तुम
मैं जिस्म हूँ
जिसकी जान हो तुम
मैं एक राही
जिसकी मंजिल हो तुम
मैं वह दुआ हूँ
जिसकी इनायत हो तुम
मैं एक बीज
जिसका अंकुरण हो तुम
मैं पौधा
जिसकी छाव हो तुम
एक पुष्प मैं
उसकी सुगंध हो तुम
एक मंदिर मैं
जिसकी मूरत हो तुम
मैं एक दीपक
उसकी ज्योति तुम
मैं सूरज
जिसकी रोशनी तुम
मैं चाँद
जिसकी चाँदनी तुम
दोनों एक दूजे बिन
कितने
अधूरे !

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