Thursday, 30 June 2016

उस अनजाने की छाव !


उस अनजान की छाया:
धुप की तेज रौशनी 
लगातार मेरी आँखों में चुबती
में खुद को बचाने की करती लाख कोसिस
लेकिन असफल पाती 
मेरी आँखे टप टप बरसती
फिर सर नीचे किये खुद को छुपा लेती
अचानक ही धुप का वो टुकड़ा 
जो लगातार मेरी आँखों में चुब रहा था
छुप गया
जैसे ही आँखे खोली
माथा उठाया
सामने पाया
एक अनजान को
जो मझे उस धुप के टुकड़े से बचा रहा था
सूरज की तरफ पीठ किये मेरे समक्ष खड़ा था
एक पल के लिए मेरी धुंधली नजर उसके चेहरे पे जा टिकी।
फिर पाया उस अनजान का साया।।।

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