आओ तो
जरा ये रोशनी को बुझा जाओ
जो तुम जला कर चले गए
जिसकी लौ बुझी नहीं
अभी तक !
Tuesday, 30 August 2016
अस्तित्व
हवा की यह ठंडी फुहार
देखो तो
कैसे मेरे जिस्म पे
मेरी रूह को
वो ठंडा स्पर्श दे रही
जैसे पहली बार जब
तुमने मेरी आत्मा को छुआ था
पहली बार तुम्हारा स्पर्श पाकर मैंने
खुद को पवित्र किया था
मेरी रूह में वो ठंडक
आज भी बिलकुल उसी तरह से समाई है
जिस तरह वह शाख
जिस पर पत्ते तो नए आ गए है
लेकिन पुराने पत्ते जमीं पर बिखरे टूटे नहीं
बल्कि
अपना अस्तित्व बनाये हुए
इस ठंडी हवा संग नाच रहे है
अपने होने का आभास दे रहे हैं !
वो पहली अज़ान !
कितनी खूबसूरत होती है यह सुबह की पहली अजान
बिलकुल हमारे पहले मिलन की पहली शाम की तरह !
तुम्हारी ओट !
देखो न वो चाँद कैसे छुप रहा है
उस बादल की ओट में
बिलकुल मेरी तरह
जैसे मैं खुद को छुपाती थी
तुम्हरी ओट में
इस दुनिया से !
एक गुज़ारिश !
तेरे लबों पे किसी और का नाम भी आने न पाये
तेरी नज़रो में किसी और का ख़्वाब भी आने न पाये
तेरी नींद में किसी और का सपना भी आने न पाये
तेरी आँखों में कीसी और का चेहरा भी आने न पाये
तेरी साँसों में किसी और की महक भी आने न पाये
तेरी रूह पे किसी और का स्पर्श भी न होने पाये
मैं इस कदर तुझ में समां जाउ
मेरे सिवा कोई अपना निशां भी न ढूढने पाये
तुझ तक पहुँचने का पता सिर्फ मेरे पास हो ।
Sunday, 28 August 2016
तुम्हारी चाह !
दूर कहीं जब संध्या अपने सूरज को बुलाये,
और!
सूरज अपने घर चले जाए
तब मैं भी अन्धेरी रात में,
तुम्हें अपने पास ही रहने देना चाहता हूँ!
तुम्हें करीब बिल्कुल करीब से छूना चाहता हूँ,
जब कभी बछड़ा गाय से बिछड़ता है और फिर मिलता है,
मैं तुमसे वैसे ही मिलना चाहता हूँ
तन्मयता से!
तुम्हारे होठों को हल्के हाथों से स्पर्श चाहता हूँ ,
मैं तुमसे कुछ नहीं माँग रहा,मैं तुमसे सबकुछ चाह रहा हूँ!