Wednesday, 16 November 2016

फिर वहीँ !

न जाने कौन सी दुनिया में गुम
वह बैठी थी,
उस बस की शीट पर !
एक अंजान सा सपना आँखों में उसके
निरन्तर गोते लगा रहा था !
उसे महसूस हुआ वो बरसों पुराना
एहसास !
कोई अपना सा
जिसका मोह उसे खुद की ओर खींच रहा था !
उसके कंधे पे सर टिकाये !
आँख बंद किये
उसके स्पर्श का अहसास लेती।
उस बगल की शीट पर
लगा जैसे वही बैठा है !
एकाएक बस का झटका लगा
जोर से
उसका सर जा टकराया
अपनी शीट से
आँख खुली
और देखा
कोई न था आसपास उसके
वो बगल वाली शीट भी खाली थी
फिर आवाज़ एक सुनाई दी
चलिये,मैडम दिलशाद गार्डन मेट्रो स्टेशन आ गया !
उतरिये !

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