अलंकृत
Monday, 21 November 2016
रिसना !
मैं रिसती गयी तुम्हारे भीतर
धीरे धीरे !
आकाश के उस चाँद की तरह
जो,
घटता रहता है,
पूर्णिमा के बाद !!!
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