Thursday, 30 June 2016

हवा की यह ठंडी फुहार !

हवा की यह ठंडी फुहार
देखो तो
कैसे मेरे जिस्म पे
मेरी रूह को
वो ठंडा स्पर्श दे रही
जैसे पहली बार जब
तुमने मेरी आत्मा को छुआ था
पहली बार तुम्हारा स्पर्श पाकर मैंने
खुद को पवित्र किया था
मेरी रूह में वो ठंडक
आज भी बिलकुल उसी तरह से समाई है
जिस तरह वह शाख
जिस पर पत्ते तो नए आ गए है
लेकिन पुराने पत्ते जमीं पर बिखरे टूटे नहीं
बल्कि
अपना अस्तित्व बनाये हुए
इस ठंडी हवा संग नाच रहे है
अपने होने का आभास दे रहे हैं !

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