तुम समझ पाते !
फिर कभी नहीं भेट होगी !निहारिका पुरे रास्ते भर यही सोचती हुई जाती है और अपना एक एक कदम इस तरह आगे बढ़ाती है मनो फिर दोबारा कभी उन राहों पर उसके क़दमों के निशान न बने और जो निशान बने हुये हैं वो हमेशा के लिए मिट जाए कुछ इस तरह जैसे उस पत्ते का अपने ही पेड़ से टूट कर गिरना और जमीं समां जाना
आज पुरे दो बरस बाद निहारिका आकाश से मिलने जा रही थी । लेकिन आज निहारिका की आँखों में वो चमक नहीं थी जो सदा आकाश के आने की खबर पाते ही हुआ करती थी । आज उसने आकाश का पसंदिदा हरा सलवार सूट भी नहीं पहन और माथे पे बिंदिया भी नहीं लगाई जो वो सदा ही आकाश से मिलनेे जाते वक़्त लगाया करती थी ।
न ही उसने वह कंगन पहना जो आकाश ने निहारिका के लिये मद्राश से भेजा था।
चूँकि निहारिका को मालूम था की आज वह आंखिरी बार आकाश से मिलने जा रही है,आज आंखिरी बार वह आकाश को जी भर के देखेगी।
सुबह समय से पहले ही वह स्टेशन पहुँच गयी। आकाश की गाड़ी बस कुछ ही देर में स्टेशन पर पहुचने वाली थी।आज पहली बार निहारिका समय से पहले पहुच गयी और आकाश की गाड़ी का इंतज़ार करने लगी।
कुछ ही समय बाद आकाश की गाड़ी का हॉर्न सुनाई दिया और निहारिका खट से खड़ी हो गयी। इतने में आकाश उसे दिखाई दिया आकाश को देख निहारिका का मन एक पल के लिए बहुत पीछे जा भगा जहाँ , आकाश की छाया मात्र पाकर निहारिका उससे लिपट जाया करती।
लेकिन आज नियति देखो ! चाहते हुए भी वह अपनी जगह से एक कदम आगे नहीं बड़ा पा रही थी । उसका मन आकाश की तरफ़ अपनी पूरी रफ़्तार के साथ भागे जा रहा था परन्तु निहारिका अपने ही स्थान पर शांत स्तब्ध इस तरह खड़ी थी जैसे वह सूखा वृक्ष अपने सम्पूर्ण अस्तित्व के साथ जमीन पर ढह जाने को तत्पर हो ।
आकाश दौड़ते हुए निहारिका के पास आया और जल्दी से निहारिका को खुद में समेटना चाहा लेकिन निहारिका की आँखें एकटक आकाश को देखती इस तरह जैसे आकाश की छवि को हमेशा के लिए निहारिका अपनी आँखों में कैद कर आँखें बंद कर देना चाहती हो ।
इतने में आकाश ने निहारिका ने आकाश से पूछा !
क्या बात है ?
तुम इतनी शांत सी क्यों हो ?
निहारिका खुद को संभालती हुई एकदम झटके से अपने उसी चुलबुले अंदाज़ में बोलने लगी..
कुछ भी तो नहीं तुम्हारा इंतज़ार करते करते थक गयी थी !
अच्छा ! माफ़ कर दो । अब से तुमको मेरा इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा । मैं अब तुम्हारे ही शहर ही में अपनी पोस्टिंग करवा रहा हूँ । तब तो रोज़ मिलोगी न !
रोज़ ! अब तो मैं तुमसे कभी नहीं मिल पाऊँगी आकाश ! निहारिका मन ही मन सोचने लगी ।
दोनों जाकर स्टेशन के उसी बेंच पर बैठ गए जहाँ हमेशा बैठा करते थे । आज सबकुछ बदला सा लग रहा था !
कुछ ही देर बाद आकाश अपने घर के लिए रवाना होता हैं और निहारिका को घर से वापस आने की तारीख बताता है,15 जुलाई !
निहारिका तुम 15 जुलाई को मुझे स्टेशन पर मिलना ठीक 9 बजे । मैं समय से पहुच जाऊंगा ।
फिर जी भर के तुम से बातें भी तो करनी हैं । तुम्हारे लिए मैं बहुत सारे अखरोट लेते आऊंगा माँ ने मेरे लिए बचा के बक्शे में रखे होंगे तो मैं तुम्हारे लिए रख लूंगा सारे ।
'तुम खा लेना मेरे हिस्से के भी'
निहारिका के इस एक वाक्य में बहुत कुछ छुपा हुआ था जिसे आकाश नहीं समझ पाया ।
आकाश ने अपना सामन उठाया और निकल पड़ा घर को ।
निहारिका फिर मिलते हैं 15 जुलाई को ! इतना कहकर आकाश चला गया ।
निहारिका आकाश की गाड़ी को देखती रही जब तक उसकी आँखों से ओझल नहीं होती । कुछ देर तक निहारिका उसी बेंच पर बैठी रही आंखिरी बार वह उस जगह को हमेशा के लिए आँखों में बसा लेना चाहती थी।
कुछ समय बाद ही निहारिका अपनी तामाम यादों के साथ उस जगह से लौट आई जहाँ फिर वह कभी नहीं जायेगी ।
Thursday, 30 June 2016
क्योंकि तू मेरी कहानी है !
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